Wednesday, July 30, 2014

क्या भाजपा इस लूट को रोकेगी? http://www.christianaid.org.uk/images/deathandtaxes.pdf ( SEZ = Special Economic Zone = विशेष आर्थिक क्षेत्र इसमे 2 प्रकार के क्षेत्र आते हैं... processing and non-processing zones. Processing Zone of Special Economic Zone ….इन शब्दों का अर्थ है कि बडी कम्पनियों को 
देश की ज़मीन दे दी जाए, जहां वे जो मर्ज़ी करें. किसानो और आदिवासियों को बिना उचित मुआवज़ा 
दिये मार भगाएं. खनन करें. परयावरण को नष्ट करें, फैक्टरियां लगाएं, किसानो को मज़दूर बनाएं 
और दोनो हाथों से मुनाफा कमाएं. Non-processing Zone of SEZ…..इसमे शापिंग माल, मनोरंजन पार्क, और रहने के लिये 
घर और फ्लैट इत्यादि आते हैं.)
कम्पनियां जो SEZ में अन्धा मुनाफा कमा रहीं हैं 1950 से लेकर 2008 तक 60 करोड लोग विकास के नाम पर अनुचित कार्यों के कारण अपने घर और ज़मीन से बेदखल किये जा चुके थे. बहुत सारे लोगों को राज्य से किसी भी प्रकार की कोई भी सहायता नहीं मिली. दूसरी ओर हैं कम्पनियां जो SEZ में अन्धा मुनाफा कमा रहीं हैं. टाटा का 2006/07 का मुनाफा 14 खरब डालर था. देश की कुल आय का 3.2% अकेले टाटा के हाथ आया.
( सोचिये ज़रा, टाटा के हाथ 3.2%... जब्कि सारे देश की कुल आय का सिर्फ 4% सारे देश की शिक्षा पर खर्च होता है. सारे देश की शिक्षा का खर्च और एक कम्पनी के मुनाफा बराबर? ) रिलायंस, जिन्दल स्टील, इंफोसिस, नोकिया, इत्यादि हर साल खरबों डालर का मुनाफा कमा रहे हैं. इन विशेष आर्थिक क्षेत्र मे कम्पनियों को जानते हैं और क्या दिया जा रहा है? कर से मुक्ति.... क्स्टम, आमदनी, आयात-निर्यात, खरीद-बेच, सर्विस ... सारे करों से छूट. जी हां. पहले पांच साल इन कम्पनियों को एक पैसे का भी कर नहीं देना होता. फिर अगले दो साल 50% छूट मिलती है. और उसके अगले तीन साल तक मुनाफे को अगर कम्पनी फिर से निवेश कर दे तो फिर से 50% छूट. न सिर्फ कार्यकर्ताओं का, बल्कि इंगलैंड के DFID (Department For International Development) का भी मानना है कि कम्पनियों को कर मे मिलने वाली ये छूट भारत के गरीब के मुन्ह पर सबसे बडा तमाचा है. भारत मे 4 अरब लोग एक डालर रोज़ से भी कम मे जी रहे हैं. 9 अरब लोग 2 डालर रोज़ से कम मे जी रहे हैं. ( दूसरे शब्दों में, 13 अरब लोग भूखों मरने की कगार पर हैं.) इनके ऊपर के दूसरे 55 अरब लोग एक वक्त का खाना ही खा पाते हैं. दुनिया के सबसे ज़्यादा गरीब लोगों का एक तिहाई भाग भारत मे है. कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या भारत मे अफ्रीका से दुगुनी है. दुनिया के भूख और बीमारी से मरने वाले बच्चों में से एक चौथाई भारत मे मरते हैं. दुनिया की 1/5 माताएं हमारे देश मे मरती हैं. और दुनिया के 1/5 तपेदिक के मरीज़ हमारे देश मे जी रहे हैं. ऐसे गरीब, मजबूर देश मे अमीरों को कर की छूट? इससे भद्दा, अश्लील मज़ाक और क्या हो सकता है? हमारा वित्त मंत्रालय खुद मानता है कि 2010 तक विशेष आर्थिक क्षेत्र मे कर की छूट के कारण देश को 2 खरब डालर ( 1 नील 60 खरब रुपए) की हानि हो चुकी होगी. इतना ही नहीं, SEZ बनाने ज़मीन की कीमत, पूंजी निवेश और मज़दूर सब पर गलत प्रभाव पडता है. ज़्यादातर SEZ बडे शहरों के इर्द गिर्द बनने लगते हैं, जहां ज़मीन की कीमत आसमान छूने लगती है और गरीब को काम की तलाश मे गांव छोडना पडता है. सभी कमपनियां सिर्फ SEZ मे ही काम करना चाहती हैं. इसलिये ज़्यादा से ज़्यादा क्षेत्र को SEZ करार दिलवाने की होड मच जाती है. इस तरह SEZ मे होने वाला निवेश दरअसल कोई नया निवेश नहीं होता , बल्कि देश के अन्य हिस्सों मे होने वाला निवेश ही इस तरफ खिंचा चला आता है. तो SEZ एक बहुत बडा धोखा है. धोखे से अधिक कुछ नहीं. गुजरात मे अम्बानी के लिये तो पहले से चल रहे उद्द्योगों को ही SEZ घोषित कर दिया गया. सरकार का ये तर्क की SEZ से विदेशी निवेश बढेगा इस्लिये बेबुनियाद है क्योंकि भारत की अर्थ्व्यवस्था को , जो बडे ही स्वस्थ ढंग से बढती हुई अर्थ-व्यवस्था है, इस तरीके से घाटा उठा कर विदेशी पूंजी को आकर्षित करने की ज़रूरत नहीं है. SEZ मे बना, कर की छूट मिला, सस्ता माल तस्करी हो कर देश के दूसरे हिस्सों मे पहुंचता है और बाकी के उद्द्योग धन्धो की छुट्टी कर देता है. इतने नुकसान उठा कर SEZ से सिर्फ 40 लाख लोगो को नौकरी मिलेगी. और ये भी सही नम्बर नही है क्योंकि कितने उद्द्योग चौपट होंगे, ये कोई नहीं जानता. 2005 तक भारत मे लगभग 550 SEZ आ चुके थे. इसके विपरीत चीन मे सिर्फ 6 बडे निर्यात समब्न्धित औद्द्योगिक क्षेत्र बनाये गये. और वहां पर करों मे छूट नहीं है. बहुत सी कम्पनियों को पुरानी तारीखों से SEZ का अधिकार दिया गया. आप ही सोचिये, ये उदारता नौकरियां बढाने के लिये तो हो नही सकती. तो क्यों दे रहे हैं कम्पनी को कर में छूट? 7 मई 2005 को जब SEZ कानून पास हुआ तो सिर्फ 7 सांसदों ने बहस मे भाग लिया. बहुत से लोगों के अनुसार ये कानून दरअसल असंवैधानिक है. संविधान की धारा 49 को चालाकी से प्रयोग कर के बाकी सारे संविधान को नकार दिया गया है. इस बात को ले कर कुछ किसान SEZ कानून को अदालत मे चुनौति भी दे रहे हैं. करो मे छूट बडी कम्पनियों को सब्सिडी या मदद देने के बराबर है.
एक गरीब देश की सरकार के लिये ऐसा करना शर्मनाक हरकत है.

लेख अनुवादक: मीना मैलार्ट-गर्ग

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